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वन्य जीव संरक्षण मोर का भाई खरमोर

मोर का भाई खरमोर मैं समझता हूं कि हम सभी ने मोर को कभी न कभी तस्वीरों से अलग आमने-सामने जरूर देखा होगा। कुछ खुशनसीब लोगों ने मोर को पंख फैलाकर नाचते हुए भी देखा होगा। लेकिन, क्या हममें से किसी ने खरमोर को भी देखा है। जी हां, नीचे जिस पक्षी की तस्वीर आप देख रहे हैं वह खरमोर यानी लेसर फ्लोरिकन है। भारत के चार राज्यों में बस अब 264 खरमोर ही बचे हैं। बाकी कहां गए ??? भारत में बस्टर्ड फैमिली के पक्षियों की चार प्रजातियां पाई जाती हैं। लेसर फ्लोरिकन यानी खरमोर उसमें सबसे छोटा होता है। सबसे बड़ा बस्टर्ड यानी ग्रेट इंडियन बस्टर्ड यानी गोडावण भारत में अब मुश्किल से सौ बचा है। पता नहीं हम उसे बचा पाने में कामयाब हो पाएंगे या नहीं। दूसरी तरफ, हमारी अलग-अलग कारगुजारियों के चलते खरमोर भी विलुप्त होने की कगार पहुंच चुका है। भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा कुछ महीनों पहले जारी आंकड़ों के मुताबिक खरमोर की आबादी में वर्ष 2000 की तुलना में 80 फीसदी की गिरावट आई है। उस समय इसकी संख्या साढ़े तीन हजार के लगभग आकी गई थी। लेकिन, अब इसमें भारी गिरावट आई है और यह सिर्फ 264 के लगभग ही रह गई है। खरमोर को सबसे पह...

अच्छे लोगों के साथ बुरा क्यो होता है

हमेशा अच्छे लोगों के साथ ही बुरा होता है। एक आम निष्कर्ष तो यही हैं कि अगर आप शेर को नहीं छेड़ते तो इसका मतलब यह नहीं कि शेर भी आपको नहीं खायेगा | तो फिर क्या यह संसार हमेशा से इसी तरह संचालित होता आया हैं ? शायद हाँ | इससे जुडी एक रोचक कहानी हैं - एक बार किसी जंगल में एक लड़का नदी किनारे घूम रहा था, तभी उसने एक दुखी और हताश स्वर में किसी के रोने की आवाज़ सुनी | उसने देखा की एक मगरमच्छ जाल में उलझा हुआ है और मदद के लिए पुकार लगा रहा हैं | वह लड़का उसकी मदद करना चाहता था परन्तु उसे उस पर संदेह भी था | मगरमच्छ: कृपया मेरी मदद करो, मुझे बचा लो, मुझे रिहा कर दो | लड़का : अगर मैं आपकी मदद करता हूँ तो आप आज़ाद होते हुए ही मुझे खा लेंगे | मगरमच्छ (रोते हुए): मैं उस व्यक्ति को कैसे खा सकता हूँ जिसने मेरी जान बचाई? इस विशाल वन में बहुत से जीव जंतु हैं जिन्हे मैं खा सकता हूँ | आप विश्वास रखे मैं आपको कोई हानि नहीं पहुँचाऊँगा और सदैव आपका ऋणी रहूंगा। (लड़के को दया आ गई और उसने जाल काटना शुरू कर दिया। जैसे ही मगरमच्छ का सिर जाल से बाहर आया तो उसने लड़के के पैर को अपने जबड़े में जकड लिया | ) मगरमच्छ...

बड़ी बेमुरव्वत होती है मोत

बड़ी ही बेमुरव्वत होती है मौत , न वक्त का ख़याल रखती है, न किसी के ओहदे का कोई लिहाज़। न इसे किसी की उम्र से कोई मतलब , न इसे किसी की जिम्मेदारी का कोई एहसास , एकदम खुदगर्ज़ है। कभी इसके आने की आहट भी नहीं मिलती तो कभी यह विकराल रूप धारण कर प्रलय मचा देती है। कोई भूख से मर जाता है तो कोई ज्यादा खाकर , कोई सोते सोते निकल लेता है , तो कोई बाथटब में। कुछ मज़े करने के चक्कर में मौत के लपेटे में आ जाते है। दिल्ली में एक सज्जन अपनी शादीशुदा प्रेमिका से मिलने गए तभी उसका पति भी आ गया , डर के मारे कूद पड़े तीसरी मंज़िल से - खाया-पिया कुछ नहीं और गिलास तोडा बारह आना। एक महाशय अपनी शादी की ख़ुशी में चल बसे तो एक ने शादी न होने के गम में ख़ुदकुशी कर ली। कोई शादी से खुश नहीं था इसीलिए, तो कोई जिंदगी से निराश था इसीलिए , कोई सब कुछ होते हुए भी खुश नहीं था तो कोई उसके पास कुछ नहीं था , इसीलिए जीना नहीं चाहता था। जितने व्यक्ति उतने कारण हो सकते है मौत आने के। राम हो या कृष्ण , रावण हो या विभीषण , राजा हो या रंक हो, साधु हो या संत हो , कोई नहीं बच पाया, यहाँ तक कि लाखो लोगो को मौत के घाट उतारने वाला हिटलर ...

कम्युटर मोबाइल का डाटा डिलीट होकर कहां जाता है

कम्युटर या मोबाइल में डिलीट किया हुआ डाटा कहाँ जाता है, क्या सचमुच वह नष्ट हो जाता है? हम जो कुछ डाटा अपने मोबाइल या कम्प्यूटर में दर्ज करते हैं, कह सकते हैं वह अमिट हो जाता है। जबतक कि हम अपने उपकरण का 'डाटा रिसेट' नहीं करते। कम्प्यूटर चाहे मैक हो या विंडोज, जो कुछ डाटा हम मिटाते हैं, प्रथमतः वह या तो ट्रैश में जाता है या रिसाइकिल बिन में। एसा ही मोबाईल के साथ भी है। जो डाटा रिसाइकिल बिन या ट्रैश में उपस्थित होता है, उसे तो पुनः रीस्टोर किया जा सकता है, इसलिए हमें यह मालूम है कि रिसाइकिल बिन या ट्रैश कोई एसा स्थान नहीं जहाँ डाटा पूर्णतया नष्ट होते हैं। किन्तु जब डाटा रिसाइकिल बिन या ट्रैश से भी मिटा दिया जाता है तो क्या डाटा नष्ट होता है? क्या हमारा उपकरण उस डाटा से आजाद होता है? नहीं। अब सवाल यह उठता है कि, आखिर डाटा जाता कहाँ है? तो जवाब है, कहीं नहीं! अपने कम्प्यूटर या मोबाइल से स्थाई तौर पर मिटाए हुए डाटा का न तो स्थान परिवर्तन होता है और न ही वह खत्म होता है। बल्कि उसके बाइनरी अथवा टाइटल में परिवर्तन कर दिया जाता है। हमें वह डाटा दिखाई देना बन्द हो जाता है। एक प्रकार ...

जब मैं बुढ़ा हो जाऊंगा

जब मैं बूढ़ा हो जाऊँगा! जब मैं बूढ़ा हो जाऊँगा, एकदम जर्जर बूढ़ा, तब तू क्या थोड़ा मेरे पास रहेगा? मुझ पर थोड़ा धीरज तो रखेगा न? मान ले, तेरे महँगे काँच का बर्तन मेरे हाथ से अचानक गिर जाए या फिर मैं सब्ज़ी की कटोरी उलट दूँ टेबल पर, मैं तब बहुत अच्छे से नहीं देख सकूँगा न! मुझे तू चिल्लाकर डाँटना मत प्लीज़! बूढ़े लोग सब समय ख़ुद को उपेक्षित महसूस करते रहते हैं, तुझे नहीं पता? एक दिन मुझे कान से सुनाई देना बंद हो जाएगा, एक बार में मुझे समझ में नहीं आएगा कि तू क्या कह रहा है, लेकिन इसलिए तू मुझे बहरा मत कहना! ज़रूरत पड़े तो कष्ट उठाकर एक बार फिर से वह बात कह देना या फिर लिख ही देना काग़ज़ पर। मुझे माफ़ कर देना, मैं तो कुदरत के नियम से बुढ़ा गया हूँ, मैं क्या करूँ बता? और जब मेरे घुटने काँपने लगेंगे, दोनों पैर इस शरीर का वज़न उठाने से इनकार कर देंगे, तू थोड़ा-सा धीरज रखकर मुझे उठ खड़ा होने में मदद नहीं करेगा, बोल? जिस तरह तूने मेरे पैरों के पंजों पर खड़ा होकर पहली बार चलना सीखा था, उसी तरह? कभी-कभी टूटे रेकॉर्ड प्लेयर की तरह मैं बकबक करता रहूँगा, तू थोड़ा कष्ट करके सुनना। मेरी खिल्ली मत उड़ाना प्लीज़। मेरी...

निंदा और ईष्या का स्वाद

कुछ लोग हर वक्त दूसरे की बुराई (निंदा) करते रहते हैं? लोग बुराई इसलिए करते हैं भई…एक तो निन्दा का रस बडा ही स्वादिष्ट होता है जो एक बार मुँह लग जाए, फिर बार बार चखने को जी चाहता है। इस का स्वाद तो बचपन में ही परिवार व समाज द्वारा चखा जो दिया जाता है..! अहं को संतुष्ट करना होता है कि देखो वह कितना बुरा है और हम कितने अच्छे हैं! जिसका जितना मोटा अहं,उसको निन्दा की खुराक भी उतनी ज्यादा चाहिए होती है ! उन्हें खाया पिया तब तक हज़म ही नहीं होता जब तक वह दिल खोल कर निंदा न कर लें। सुबह आँख खुलने से लेकर रात को सोने तक बस यही करते हैं वह। तभी तो इतने संतुष्ट रहते हैं। ऐसी आत्म तुष्टि शायद ही किसी अन्य काम से संभव हो। आपको पता है स्त्रियाँ नित नियम से कीर्तनों में क्यों जाती हैं? भजन कीर्तन के बाद जो वहाँ सास बहू के पुराण खुलते हैं, जो कथाएँ सुनी सुनाई जाती हैं वही उनके जाने का असली आकर्षण केन्द्र होती हैं। और वही उनका दिन बना देती हैं। पर-निंदा में जो परमानंद है यह वही जानता है जो निरन्तर इसका अभ्यास करता रहता हो। सुस्ती आ रही है? मन कुछ उदास सा है? किसी भी परिचित की निंदा करना शुरू...

आज करे तो सब अब कर

आज नहीं, अभी नहीं तो कभी नहीं। बचपन मे एक दोहा सुना था। "काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।। पल में प्रलय होयेगी, बहुरि करेगा कब?" इसका अर्थ समझने में थोड़ी देर हुई। इसका ये अर्थ नहीं है कि कल प्रलय आ जाएगी और आपका काम अधूरा रह जाएगा। हम यही सोचा करते थे कि प्रलय आ जाएगी तो काम की ज़रूरत भी तो ख़त्म हो जाएगी, तो क्यों करें? इसका अर्थ है, कि अगर आज काम, नहीं कर रहे है, अभी नहीं कर रहे है तो कल तक शायद वो उत्साह ना रहे, या कल तक शायद परिस्थिति ऐसी हो जाए कि आप चाहकर भी वो काम कर ना पाए, जो आप दिल से करना चाहते थे और आपने कल पर टाल रखा था। उठिए और लग जाइए, कहीं बाद में बस पछताना पड़े कि वक़्त नहीं मिलता। मेहनत करने का मन नहीं है तो मेहनत का दिखावा करो। कुछ देर बाद मन ख़ुद ब ख़ुद लग जाएगा। कभी आजमा कर देखियेगा, जब आपका बिल्कुल मन ना हो पढ़ने का, तब केवल रीडिंग करने के लिए बुक लेकर बैठ जाइये। और बस, बिना किसी दबाव के रीडिंग कीजिए। आप देखेंगे कि पन्द्रह से बीस मिनट के अंदर ही आपका उत्साह वापस आ जाएगा। ये है दिमाग़ को बहकाकर अपनी बात मनवाने का तरीका। अपनी शुरुआत को याद कीजिए। वो सार...